Tuesday, August 19, 2008

हासिल

मुस्कुरातें हैं आज वो हमें याद कर

रिश्ते वो थे जो हमने निभाए कई

हर बार आए मुश्किलों के सैलाब, पर

पल कुछ चुराए हमने, और वजह खुशी की कोई

चाहे हो फ़र्ज़ की, या क़र्ज़ की हो पुकार

रिश्तों के हर अंदाज़ को गले लगाया

सोचा इस रात की भी, सुबह होगी नयी

मुस्कुरातें हैं आज वो हमें याद कर

जिन दोस्तों से था दोस्ताना हमारा

उठा लो हाथ में गर कोइ पुरानी तस्वीर

बचपन का नटखट आज भी नज़र आएगा सारा

ज़िन्दगी के सफर में, हर एक मोड़ पार

कई बार मिले दोस्त, कई बार छूटा कोई प्यारा

जियें हैं हमने दोस्ती के दस्तूर और दायरे, पर

नहीं छोड़ा किसी का दामन और विश्वास अधूरा

कितने मुसाफिर मिले हमें सफर में

कितनी मुस्कुराहटों में था मैं शामिल

बना कितने हमसफ़र का साकी मैं

और कितने ख्वाबों का बना साहिल

आज लेटऐ सोच रहा हूँ कब्र में

यही है मेरी ज़िन्दगी का हासिल

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