दीनभर खेल कीरणों की होली
आदीत्य समा गया है मानो
पश्चीम बाला की झोली
गोधूली की ये बेला अलबेली
संध्या के मस्तक पर देखो ज्यों
सद्य अभीषीक्त कुंकुम रोली
आ रही है नीशी बाला मतवाली
हाथों में सजाये है देखो
सुंदर सपनों की थाली
नज़र कहीं ना लग जाये अली
कह रही है मानो
सल्लज गालों की लाली
की्ड़ा ऱत है तारक वृंदों की टोली
आसमां का आँगन सजा है
चंदा मामा के घर आज दीवाली
इन सब से अनजान दुनीया पगली
बेखबर पलकें बंद कीये है
जग का आँगन खाली-खाली...
Original Joke
12 years ago